हर नदी की अपनी यात्रा और कहानी होती है, जिसमें कई रहस्य छिपे होते हैं। सुख-समृद्धि देने वाली नदी कावेरीका भी भारत की धर्म-संस्कृति, समाज-साहित्य आदि को बनाने और बढाने में विशेष योगदान है। कावेरीका उदगम दक्षिण भारत के कर्नाटक में दो पर्वत मालाएं हैं-पश्चिम और पूर्व, जिन्हें पश्चिमी और पूर्वी घाट के नाम से जाना और पुकारा जाता है। पश्चिमी घाट के उत्तरी भाग में एक बहुत ही सुंदर कुर्ग नामक स्थान है। इसी स्थान पर सहा नामक पर्वत है, जिसे ब्रह्माकपाल भी कहते हैं, जिसके कोने में एक छोटा-सा तालाब है। यही तालाब कावेरीनदी का उद्गम स्थल है। यहां देवी कावेरीकी मूर्ति है, जहां एक दीपक सदा जलता रहता है और नित्य पूजा भी होती है।
कुर्ग की पहाडियोंसे लेकर समुद्र तक की लंबी यात्रा में कावेरीका रूप कई बार बदलता है। कहीं यह पतली धारा की तरह हो जाती है, तो कहीं इसकी जलधाराएं सागर-सी दिखाई देती हैं। कभी यह सरलता से चुपचाप बहती है, तो कभी ऊंचाई से जलप्रपात के रूप में गिरती है। पचास से अधिक छोटी-बडी नदियां इसमें आकर मिलती हैं। समुद्र में विलीन होने से पहले कावेरीसे कई शाखाएं निकलती हैं और अलग-अलग नामों से अलग-अलग नदियों के रूप में बहती हैं।
कावेरीके तट पर दर्जनों बडे-बडे नगर और उपनगर बसे हैं। बीसियोंतीर्थ-स्थान हैं। अनगिनत प्राचीन मंदिर हैं और सैकडों कल-कारखाने भी इसके तट पर चल रहे हैं। इतना ही नहीं, लोगों को अन्न देने वाली कावेरीके जल का प्रयोग बिजली पैदा करने में भी होता है। कावेरीके पावन जल और तट ने देश को कई महान संत, कवि, राजा, रानी एवं प्रतापी वीर दिए हैं। इसी कारण कावेरीको तमिल भाषी माता कहकर पुकारते हैं। कावेरकी पुत्री तमिल भाषा में कावेरीको काविरि भी कहते हैं। काविरिका अर्थ है-उपवनों का विस्तार करने वाली। अपने जल से यह बंजर भूमि को भी उपजाऊ बना देती है। इस कारण इसे काविरि कहते हैं। कावेरीका एक अर्थ है- कावेरकी पुत्री। कथा है कि राजा कवेरने इसे पुत्री की तरह पाला था, इस कारण इसका यह नाम पडा।
कावेरीको सहा-आमलक-तीर्थ और शंख-तीर्थ भी कहते हैं। ब्रह्मा ने शंख के कमंडल से आंवले के पेड की जड में विरजानदी का जल चढाया था। कहा जाता है कि वह जल इसके साथ मिलकर बहा, तो कावेरीके सहा आमलक तीर्थ या शंख तीर्थ नाम पडे। तमिल भाषा में कावेरीको प्यार से पोन्नी कहते हैं। पोन्नीका अर्थ है सोना उगाने वाली। कहा जाता है कि कावेरीके जल में सोने की धूल मिली हुई है। इस कारण इसका यह नाम पडा। वैष्णव और शैव मंदिर कावेरीके तट पर वैष्णवों का विख्यात मंदिर श्रीरंगम है, जो भगवान विष्णु का मंदिर है। इसके तट पर शैव धर्म के भी कई तीर्थ हैं। चिदंबरमका मंदिर कावेरीकी ही देन है। श्रीरंगमके पास बना हुआ जंबुकेश्वरमका प्राचीन मंदिर भी प्रसिद्ध है। तिरुवैयारु,कुंभकोणम,तंजावूरशीरकालआदि जैसे अनेक स्थान पर शिवजी के मंदिर कावेरीके तट पर बने हैं। तिरुचिरापल्लीशहर के बीच में एक ऊंचे टीले पर बना हुआ मातृभूतेश्वरका मंदिर और उसके चारों ओर का किला विख्यात है। रामायण रची कंबनने शैव और वैष्णव संप्रदाय के कितने ही आचार्य, संत और कवि कावेरीके तट पर हुए हैं। विख्यात वैष्णव आचार्य श्री रामानुज को आश्रय देनेवालाश्रीरंगपट्टनमका राजा विष्णुवर्द्धनथा। तिरुमंगैआलवरऔर कुछ अन्य वैष्णव संतों का जन्म कावेरी-तीरपर ही हुआ था। सोलह वर्ष की आयु में शैव धर्म का देश-भर में प्रचार करने वाले संत कवि ज्ञानसंबंधरका जन्म भी कावेरी-तटपर हुआ था। तमिल भाषा के कितने ही विख्यात कवि इसी नदी के किनारे पले-बढे।
महाकवि कंबनने तमिल भाषा में अपनी विख्यात रामायण की रचना इसी नदी के तट पर की थी। दक्षिण संगीत को नया प्राण देने वाले संत त्यागराज,श्यामा शास्त्री और मुत्तुदीक्षित इसी कावेरीतट के वासी थे। यह कहना अनुचित नहीं होगा कि दक्षिण की संस्कृति कावेरीकी देन है। विदाई उत्सव कावेरीके उद्गम स्थान पर हर साल सावन के महीने में बडा उत्सव मनाया जाता है। इसे कावेरीकी विदाई का उत्सव कहा जाता है। कुर्गके सभी हिंदू लोग, विशेषकर स्त्रियां, इस उत्सव में बडी श्रद्धा के साथ भाग लेती हैं। इस दिन कावेरीकी मूर्ति की विशेष पूजा होती है। तलैकावेरी कहलाने वाले उद्गम-स्थान पर सब स्नान करते हैं।
स्नान करने के बाद प्रत्येक स्त्री कोई न कोई गहना, उपहार के रूप में इस तालाब में डालती है। इतिहास -कावेरी के तट पर तिरुवैयारुनामक स्थान पर पेशवाओंने जो संस्कृत विद्यालय स्थापित किया था, वह आज भी विद्यमान है।
-इसी तट पर चोल साम्राज्य बना और फैला।
-रिकालन के समय में समुद्र तट पर कावेरीके संगम-स्थल पर पुहारनामक विशाल बंदरगाह बना।
-यूनानी लोगों ने इस नगर को कबेरस नाम दिया था। यह कबेरस शब्द भी कावेरीशब्द से ही बना है।